भारत का सबसे पुराना किला, यहां आज तक न कोई जा पाया है न जा पायेगा, जानिए क्यों

दुनिया भर में अनेक किले हैं। जो अपने ही किसी कारण से मशहूर हैं। लेकिन इनके पीछे कोई रहस्य जरूर होता है। कई बार इनके पीछे के रहस्य हमारे होश उड़ा देते हैं। अक्सर हमने कई बार सुना होगा कि ऐसे किलों में कुछ भूतिया राज दबे होते हैं। जिनकी वजह से हम यहां जाना […]

dainiksaveratimes

September 5, 2021

Ajab Ghazab

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zeenews

दुनिया भर में अनेक किले हैं। जो अपने ही किसी कारण से मशहूर हैं। लेकिन इनके पीछे कोई रहस्य जरूर होता है। कई बार इनके पीछे के रहस्य हमारे होश उड़ा देते हैं। अक्सर हमने कई बार सुना होगा कि ऐसे किलों में कुछ भूतिया राज दबे होते हैं। जिनकी वजह से हम यहां जाना खतरे से खाली नहीं समझते हैं।  ऐसे ही एक किले के बारे में आजा हम आपको बताने जा रहे है।  बता दें भारत का सबसे पुराना किला  हिमाचल प्रदेश  के कांगड़ा जिले में स्थित है। इस किले को कांगड़ा का किला  के नाम से जाना जाता है। कांगड़ा किला का रहस्य आज भी लोगों के लिए पहेली है। यह किला 463 एकड़ में फैला है।

रहस्यों से भरा हुआ है कांगड़ा का किला
 जेकरि  आपको बता दें इस किले में आज तक कोई जा नहीं पाया है। जो जाता है वो वापिस नहीं आता है।  इस किले को कब बनवाया गया, इसके बारे में कोई भी जानकारी किसी को नहीं है। इस किले का उल्लेख सिकंदर महान के युद्ध संबंधी रिकार्डों में भी मिलता है, जिससे इसके ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में मौजूद होना बताता है। माना जाता है कि इसका निर्माण कांगड़ा राज्य (कटोच वंश) के राजपूत परिवार ने करवाया होगा। इस परिवार ने खुद को प्राचीन त्रिगत साम्राज्य के वंशज होने का प्रमाण दिया था। बता दें कि त्रिगत साम्राज्य का उल्लेख महाभारत में मिलता है। 

इतिहास है काफी रोचक
 साल 1615 ईस्वी में मुगल सम्राट अकबर ने किले को जीतने के लिए घेराबंदी कर दी थी, लेकिन वह इसे जीतने में असफल रहा था। फिर 1620 ईस्वी में अकबर के बेटे जहांगीर ने चंबा के राजा को मजबूर करके इस किले पर कब्जा कर लिया था। जहांगीर ने सूरज मल की सहायता से इस किले में अपने सैनिकों को प्रवेश करवाया था। इसके बाद 1789 ईस्वी में कांगड़ा का किला एक बार फिर से वापस कटोच वंश के अधिकार में आ गया था। 

भूकंप से अंग्रेजों को लगा था बड़ा झटका
 इसके साथ ही आपको बता दें राजा संसार चंद द्वितीय ने इसे मुगलों से आजाद करवाया था।1828 ईस्वी तक यह किला कटोचों के अधीन ही रहा, लेकिन राजा संसार चंद द्वितीय की मृत्यु के बाद इस किले पर महाराजा रणजीत सिंह कब्जा कर लिया था। बाद में साल 1846 तक यह किला सिखों की देखरेख में रहा। फिर इस पर अंग्रेजों ने डेरा जमा लिया था। हालांकि 4 अप्रैल 1905 को आए एक भीषण भूकंप के बाद अंग्रजों ने किले को छोड़ दिया था। 

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